Sunday, June 22, 2025
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चीन का जल युद्ध का प्लान: ब्रह्मपुत्र और मेकांग पर बांध बनाकर लाखो लोगो को मार देंगे?

दोस्तों, पानी आज दुनिया का सबसे कीमती संसाधन बन गया है, और चीन इसे हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है! ब्रह्मपुत्र और मेकांग जैसी एशिया की बड़ी नदियों पर विशाल बांध बनाकर चीन भारत, बांग्लादेश, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों पर दबाव डाल रहा है। ये बांध सिर्फ बिजली बनाने के लिए नहीं, बल्कि पानी को रोककर या छोड़कर बाढ़ और सूखा पैदा करने का हथियार हैं। इस लेख में हम समझेंगे कि चीन कैसे पानी को हथियार बना रहा है, इससे लाखों लोगों की जिंदगी पर क्या असर पड़ रहा है, और भारत जैसे देश इसका जवाब कैसे दे रहे हैं। तो चलिए, इस गंभीर मुद्दे को आसान भाषा में समझते हैं!

ब्रह्मपुत्र पर चीन का एक खतरनाक प्लान?

ब्रह्मपुत्र नदी, जिसे चीन में यारलुंग त्सांगपो कहते हैं, भारत और बांग्लादेश के लिए जीवन रेखा है। ये नदी तिब्बत से शुरू होती है और भारत के 30% पानी और 40% हाइड्रोपावर की जरूरत पूरी करती है। लेकिन इसका आधा हिस्सा चीन के पास है, और वो इसका फायदा उठा रहा है। 2021 में चीन ने यारलुंग त्सांगपो पर 60,000 मेगावाट का एक बांध बनाने की मंजूरी दी, जो भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर मेदोग में है। ये 137 अरब डॉलर का प्रोजेक्ट दुनिया के सबसे बड़े थ्री गॉर्जेस बांध से तीन गुना ज्यादा बिजली बनाएगा।

ये बांध क्यों खतरनाक है?

  • बाढ़ का खतरा: इस बांध में इतना पानी जमा होगा कि अगर चीन अचानक पानी छोड़ दे, तो असम और अरुणाचल प्रदेश में भयानक बाढ़ आ सकती है, जहां लाखों लोग रहते हैं।

  • सूखे की आशंका: अगर चीन पानी रोक ले, तो खेती और पीने के पानी की कमी से सूखा पड़ सकता है।

  • राजनीतिक दबाव: ये बांध भारत की सीमा के इतने करीब है कि चीन इसे भारत पर दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकता है, खासकर जब दोनों देशों में तनाव हो।

2017 में चीन ने ये दिखा दिया कि वो पानी को हथियार बना सकता है। उस साल डोकलाम में भारत और चीन के सैनिक 72 दिन तक आमने-सामने थे, क्योंकि चीन भूटान की जमीन पर सड़क बना रहा था। भारत ने भूटान की मदद की, जिससे चीन नाराज हो गया। जवाब में, चीन ने भारत के साथ ब्रह्मपुत्र का पानी का डेटा शेयर करना बंद कर दिया, जबकि दोनों देशों में ऐसा करने का समझौता था। ये डेटा मानसून में बाढ़ की चेतावनी के लिए जरूरी था। नतीजा? असम में भयानक बाढ़ आई, 300 लोग मरे, और लाखों लोग बेघर हो गए। चीन ने बहाना बनाया कि उनके स्टेशन खराब थे, लेकिन ये झूठ था, क्योंकि उसी समय उन्होंने बांग्लादेश के साथ डेटा शेयर किया। ये साफ था कि चीन ने भारत को सबक सिखाने के लिए ऐसा किया।

मेकांग नदी पर भी संकट

मेकांग नदी, जो 4,900 किलोमीटर लंबी है, तिब्बत से शुरू होकर लाओस, कंबोडिया, थाईलैंड और वियतनाम से गुजरती है। ये 6 करोड़ से ज्यादा लोगों की जिंदगी चलाती है। इसे एशिया का “चावल का कटोरा” कहते हैं, क्योंकि ये वियतनाम की 50% चावल पैदावार और 27% जीडीपी का आधार है। लेकिन चीन ने मेकांग पर 12 बड़े बांध और 95 छोटे बांध बनाए हैं, जो 10 ट्रिलियन गैलन पानी रोक सकते हैं। यानी, चीन नदी का प्रवाह रोक या छोड़ सकता है।

चीन के बांधों का नुकसान

  • सूखा: 2019 से 2024 तक मेकांग का पानी 60% तक कम हो गया। 2020 में सबसे बुरा सूखा पड़ा, जिससे 65 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ और 1.7 करोड़ लोग प्रभावित हुए। इसमें चीन के बांधों की बड़ी भूमिका थी।

  • मिट्टी की कमी: बांध मिट्टी को रोक लेते हैं, जिससे वियतनाम के मेकांग डेल्टा में खेती की उर्वरता कम हो रही है। इससे 2.4 करोड़ टन चावल का उत्पादन खतरे में है।

  • मछलियों का खात्मा: बांध मछलियों के रास्ते रोकते हैं, जिससे 19% मछली प्रजातियां खत्म होने के कगार पर हैं। इससे कंबोडिया का 60% प्रोटीन और 10 अरब डॉलर का समुद्री खाना खतरे में है।

चीन 1991 से बारिश और बांधों का डेटा शेयर नहीं कर रहा, जिससे नीचे के देश बाढ़ या सूखे की तैयारी नहीं कर पाते। 2019 में ‘आइज ऑन अर्थ’ की स्टडी ने बताया कि चीन ने पानी रोका, जिससे वियतनाम में ताजा पानी खत्म हो गया। थाईलैंड में चीनी का उत्पादन 2023-24 में 20% गिरकर 88 लाख टन हो गया। कंबोडिया में मछली गांव खाली हो गए।

बेल्ट एंड रोड: कर्ज और निर्भरता

चीन के बांध उसकी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा हैं, जो 140 देशों में ट्रिलियन डॉलर का प्रोजेक्ट है। लाओस और कंबोडिया में BRI के बांधों से भारी नुकसान हुआ है।

लाओस: साउथईस्ट एशिया की बैटरी?

लाओस के 21 बड़े बांध मेकांग के 37% पानी को रोकते हैं। वो “साउथईस्ट एशिया की बैटरी” बनना चाहता है। हाइड्रोपावर से 70% बिजली बनती है, और थाईलैंड-वियतनाम को 1.96 अरब डॉलर की बिजली बेची जाती है। लेकिन:

  • कर्ज का जाल: लाओस पर 13.8 अरब डॉलर का कर्ज है, जिसमें आधा (6.9 अरब) चीन का है। इसमें 6 अरब की चीन-लाओस रेलवे शामिल है।

  • चीन का कब्जा: नम ओउ रिवर कैस्केड प्रोजेक्ट में चीन की कंपनी 85% मालिक है और 29 साल तक सारा मुनाफा लेगी।

कंबोडिया: भारी कीमत

लोअर सेसान 2 बांध, कंबोडिया का सबसे बड़ा बांध, चीन की हुआनेंग ग्रुप ने 80 करोड़ डॉलर में बनाया। इससे 34,000 हेक्टेयर जंगल डूब गया, 5,000 लोग बेघर हुए, और मछली-खेती खत्म हो गई। 2008 और 2012 की चेतावनियों के बावजूद, सरकार ने 2012 में इसे मंजूरी दी। 100% गाँववाले इसके खिलाफ थे, लेकिन उनकी नहीं सुनी गई। नए बसाए गए इलाकों में खराब जमीन और गंदा पानी मिला।

वैश्विक असर

चीन के BRI बांध एशिया तक सीमित नहीं। गिनी में सौआपिटी बांध ने 16,000 लोगों को बेघर किया, जिसके लिए चीन ने 1.175 अरब डॉलर का लोन दिया। ऐसे प्रोजेक्ट्स में चीनी कंपनियां और मजदूर काम करते हैं, और मेजबान देशों को कर्ज के अलावा कुछ नहीं मिलता।

देश क्यों चुप हैं?

इतने नुकसान के बावजूद देश चीन के खिलाफ क्यों नहीं बोलते? इसके तीन बड़े कारण हैं:

  • आर्थिक ताकत: चीन साउथईस्ट एशिया का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है। उससे लड़ने का मतलब आर्थिक नुकसान।

  • कर्ज की मजबूरी: लाओस और कंबोडिया चीन के बड़े कर्जदार हैं, जिससे वो चुप रहते हैं।

  • सैन्य शक्ति: चीन की सैन्य ताकत छोटे देशों को डराती है।

मेकांग रिवर कमीशन (MRC), जो 1995 में बना, बेकार है क्योंकि चीन इसका हिस्सा नहीं। 2016 में चीन ने लंकांग-मेकांग कोऑपरेशन बनाया, जिसमें वो लीडर है। इससे उसने MRC को कमजोर कर दिया और अपनी मर्जी चलाने का रास्ता बनाया।

भारत का जवाब: मजबूत तैयारी

भारत चुप नहीं बैठा। चीन के ब्रह्मपुत्र बांधों का जवाब देने के लिए उसने शुरू किए:

  • सियांग रिवर प्रोजेक्ट: 11,000 मेगावाट का बांध, जिसमें 900 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी जमा होगा। ये बाढ़ और सूखे से बचाएगा।

  • लोअर सुबनसिरी प्रोजेक्ट: 2,000 मेगावाट का बांध, जो 2026 तक तैयार होगा।

ये प्रोजेक्ट्स असम, अरुणाचल प्रदेश और बांग्लादेश को सुरक्षित करेंगे।

वैश्विक प्रभाव

चीन का जल युद्ध दिखाता है कि प्राकृतिक संसाधनों का कंट्रोल कैसे क्षेत्रीय स्थिरता को हिला सकता है। मछलियों का खत्म होना, मिट्टी की कमी और लोगों का विस्थापन खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल रहा है। श्रीलंका और जिबूती जैसे देशों ने कर्ज के बदले चीन को अपनी संपत्ति दी। दुनिया को चाहिए:

  • डेटा शेयरिंग: पानी का डेटा पारदर्शी ढंग से शेयर करना।

  • क्षेत्रीय सहयोग: MRC को चीन के साथ मजबूत करना।

  • सतत विकास: पर्यावरण के अनुकूल बांध बनाना।

चीन के ब्रह्मपुत्र और मेकांग पर बांध सिर्फ इंजीनियरिंग नहीं, बल्कि लाखों लोगों की जिंदगी को प्रभावित करने वाला हथियार हैं। असम की बाढ़ से लेकर वियतनाम के चावल के खेतों तक, इसका असर बहुत बड़ा है। भारत अपनी रक्षा कर रहा है, लेकिन क्षेत्रीय देशों को एकजुट होना होगा। इस मुद्दे पर नजर रखें और बताएं कि आप क्या सोचते हैं! ऐसे और लेखों के लिए हमारा न्यूजलेटर सब्सक्राइब करें और हमारी दूसरी पोस्ट्स पढ़ें।

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