हाल ही में अमेरिका की एक विशेष अदालत, यूएस कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति को एक बड़ा झटका दिया है। ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर एक्ट (IEEPA) के तहत विश्व भर के कई देशों, जैसे भारत और चीन, पर भारी टैरिफ लगाए थे। लेकिन अब इस नीति को कोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए ब्लॉक कर दिया है। इस लेख में हम इस खबर के महत्वपूर्ण पहलुओं, कोर्ट के फैसले, और इसके वैश्विक और घरेलू प्रभावों पर चर्चा करेंगे।
डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति: एक अवलोकन
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने राष्ट्रपति कार्यकाल की शुरुआत में वैश्विक व्यापार को प्रभावित करने वाली एक विवादास्पद नीति लागू की थी। उन्होंने IEEPA के तहत भारत, चीन, और अन्य देशों से आयात होने वाले सामानों पर 10% से लेकर 35% तक टैरिफ लगाए। उनका तर्क था कि यह नीति अमेरिका में विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) को बढ़ावा देगी और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगी। ट्रंप का कहना था कि अन्य देश अमेरिकी सामानों पर भारी टैरिफ लगाते हैं, इसलिए अमेरिका को भी ऐसा करना चाहिए।
हालांकि, इस नीति ने वैश्विक स्तर पर हाहाकार मचा दिया। स्टॉक मार्केट में गिरावट आई, और अमेरिकी उपभोक्ताओं को बढ़ती महंगाई की चिंता सताने लगी। इसके जवाब में, ट्रंप प्रशासन ने 90 दिनों का पॉज लागू किया, लेकिन न्यूनतम 10% टैरिफ बरकरार रहा। इस नीति के खिलाफ कई अमेरिकी आयातक, व्यापार समूह, और कानूनी संगठनों ने यूएस कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड में मुकदमा दायर किया।
यूएस कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड: एक विशेष अदालत
यूएस कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड एक विशेष अदालत है जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार और सीमा शुल्क (कस्टम) कानूनों से संबंधित मामलों की सुनवाई करती है। 1890 में स्थापित इस कोर्ट का नाम 1980 में बदलकर वर्तमान नाम रखा गया। यह कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि अमेरिका की व्यापार नीतियां संविधान और कानून के दायरे में रहें। इस मामले में कोर्ट ने ट्रंप की नीति को चुनौती देने वाले पक्षों के तर्कों को सुना और एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
कोर्ट का फैसला: ट्रंप ने की थी शक्ति का दुरुपयोग
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने IEEPA के तहत अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया। कोर्ट के अनुसार, IEEPA केवल सीमित आपातकालीन उपायों की अनुमति देता है, न कि देश की व्यापार नीति को एकतरफा बदलने की। ट्रंप का यह कदम अमेरिकी संविधान के तहत कांग्रेस की शक्तियों को कमजोर करता है, जो व्यापार नीतियों को नियंत्रित करने का प्राथमिक अधिकार रखती है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ट्रंप का यह दावा कि टैरिफ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी थे, पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा, ट्रंप की कानूनी टीम ने एक अनोखा तर्क दिया कि इन टैरिफ्स की वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध टल गया। कोर्ट ने इस तर्क को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि भू-राजनीतिक उद्देश्य, चाहे कितने भी महत्वपूर्ण हों, संवैधानिक सीमाओं से परे कार्यकारी शक्तियों को विस्तार नहीं दे सकते।
भारत-पाकिस्तान युद्ध का तर्क: क्यों हुआ खारिज?
ट्रंप की कानूनी टीम ने कोर्ट में दावा किया कि टैरिफ नीति का उपयोग भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित युद्ध को रोकने के लिए किया गया। उनका कहना था कि टैरिफ की धमकी देकर उन्होंने दोनों देशों को शांत किया। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को असंगत माना। कोर्ट का कहना था कि जब तक भारत-पाकिस्तान संघर्ष से अमेरिका को प्रत्यक्ष खतरा नहीं होता, तब तक इस तर्क का उपयोग टैरिफ नीति को जायज ठहराने के लिए नहीं किया जा सकता। यह फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि वैश्विक व्यापार नीतियों को भू-राजनीतिक मामलों से जोड़ना उचित नहीं है।
इस फैसले का प्रभाव
1. घरेलू प्रभाव
- कांग्रेस की शक्ति की बहाली: कोर्ट के इस फैसले ने अमेरिकी कांग्रेस की शक्तियों को फिर से मजबूत किया है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी राष्ट्रपति एकतरफा रूप से व्यापार नीतियों में बड़े बदलाव नहीं कर सकता।
- IEEPA की सीमाएं: इस फैसले ने IEEPA के दायरे को सीमित कर दिया, जिससे भविष्य में इसका दुरुपयोग रोका जा सकेगा।
- ट्रंप के लिए राजनीतिक झटका: 2024 के चुनावी अभियान में ट्रंप ने “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत टैरिफ को बढ़ावा दिया था। यह फैसला उनकी इस नीति को कमजोर करता है।
2. अंतरराष्ट्रीय प्रभाव
- मित्र देशों के लिए राहत: भारत, कनाडा, और यूरोपीय संघ जैसे देशों को इस फैसले से राहत मिलेगी, क्योंकि अब टैरिफ का खतरा कम हो गया है।
- वैश्विक व्यापार में स्थिरता: इस फैसले से वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता कम होगी, और करेंसी मार्केट, खासकर अमेरिकी डॉलर, में स्थिरता आएगी।
- अमेरिकी व्यापार नीतियों पर भरोसा: यह फैसला वैश्विक समुदाय को यह संदेश देता है कि अमेरिका की व्यापार नीतियां संवैधानिक प्रक्रियाओं के तहत ही लागू होंगी।
भविष्य में क्या?
ट्रंप की कानूनी टीम ने इस फैसले को यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स में चुनौती देने की बात कही है। अगर वहां भी फैसला उनके खिलाफ जाता है, तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है। इस बीच, कांग्रेस में इस मुद्दे पर लंबी बहस होने की संभावना है, क्योंकि कई सांसद ट्रंप की नीतियों से असहमत हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मामला किस दिशा में जाता है और वैश्विक व्यापार पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।
निष्कर्ष
यूएस कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड का यह फैसला न केवल डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति के लिए एक बड़ा झटका है, बल्कि यह अमेरिकी संविधान में निहित शक्ति संतुलन (चेक एंड बैलेंस) के सिद्धांत को भी मजबूत करता है। यह फैसला वैश्विक व्यापार को स्थिरता प्रदान करेगा और भारत जैसे देशों के लिए राहत की खबर है। क्या यह फैसला ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति को पूरी तरह बदल देगा? यह जानने के लिए हमें भविष्य के घटनाक्रम पर नजर रखनी होगी।
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